Sunday, May 25, 2014

अहमद फराज के गजल :-


वो चांद जो मेरा हमसफर था
दूरी के उजाड़ जंगलों में
अब मेरी नजर से छुप चुका है
इक उम्र से मैं मलूलो-तन्हा
जुल्मात की रहगुजार में हूं
मैं आगे बढूं कि लौट जाऊं
क्या सोच के इंतजार में हूं
कोई भी नहीं जो यह बताए
मैं कौन हूं किस दयार में हूं।

-- मलूलो-तन्हा = दुखी और अकेला
-- जुल्मात = अंधेरा
-- रहगुजार = रास्ते

Sunday, May 18, 2014

हिन्दी शायरी Best Hindi Shayri -


लड़कपन जिद में रोता था, जवानी दिल को रोती है
न जब आराम था साकी, न अब आराम है साकी।
-- जोश मलीहाबादी

फूल तो दो दिन बहारे-जांफजां दिखला गए
हसरत उन गुन्चों पे है जो बिन खिले मुरझा गए।
-- जौक

खत्म होगा न जिंदगी का सफर,
मौत बस रास्ता बदलती है।
-- साहिर मानिकपुरी

मुझको तड़पाने वाले बस इतना बता,
कोई कब तक किसी के सहारे जिए।
-- वफा मेरठी

जमाने का शिकवा न कर रोने वाले,
जमाना नहीं साथ देता किसी का।
-- लतीफ़ अनवर


Saturday, May 10, 2014

Mothers Day (11 May 2014) Hindi Shayri


मदर्स डे माँ को समर्पित पंक्तियां -


मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आँसू

मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना।
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लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती
बस एक माँ है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती।
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इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
माँ बहुत गुस्से में होती है तो रो देती।
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किसी को घर मिला हिस्से में या दुकाँ आई
मैं घर में सबसे छोटा था मेरे हिस्से में माँ आई.
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भूखे बच्चों की तसल्ली के लिये,
माँ ने फिर पानी पकाया देर तक.
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ये ऐसा कर्ज़ है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता
मैं जब तक घर न लौटू मेरी माँ सजदे में रहती है.
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बरबाद कर दिया हमें परदेस ने मगर
माँ सबसे कह रही है बेटा मज़े में है.

-- मुनव्वर राणा 


Monday, May 5, 2014

महान शायरों के हृदयस्पर्शी शेर ओ रुबाइयाँ :-


जो दिल की है, वो बात नहीं होती
जो दिन न हो, वो रात नहीं होती
मिलते तो हैं अक्सर, जमाने से जोश
पर अपने आप से मुलाकात नहीं होती।
-- जोश मलीहाबादी

जो चाहिए देखना, न देखा हमने
हर-शै-पे किया है गौर क्या हमने
औरों का समझना तो मुश्किल है
खुद क्या हैं इसी को कुछ न समझा हमने।
-- शाद अजीमाबादी

करते नहीं कुछ काम तो, काम करना क्या आये
जीते-जी जान से गुजरना क्या आये
रो-रो के मौत मांगने वालों को
जीना नहीं आ सका तो मरना क्या आये।
-- 'फ़िराक' गोरखपुरी

इश्क ने 'ग़ालिब' निकम्मा कर दिया,
वरना हम भी आदमी थे काम के।
-- ग़ालिब

निगाहें तोड़ लेती हैं, मुहब्बत की अदाओं को,
छुपाने से जमाने भर में शोहरत और होती है।
-- वामिक जौनपुरी