बेस्ट उर्दू शायरी -
रोशनी औरों के आंगन में गवारा न सही
कम से कम अपने ही घर में तो उजाला कीजे।
कम से कम अपने ही घर में तो उजाला कीजे।
क्या खबर कब वो चले आयेंगे मिलने के लिए
रोज पलकों पे नई शम्में जलाया कीजे।
-- रईस अख्तर
रोज पलकों पे नई शम्में जलाया कीजे।
-- रईस अख्तर
दालानों की धूप, छतों की शाम कहां,
घर के बाहर घर जैसा आराम कहां।
घर के बाहर घर जैसा आराम कहां।
दिनभर सूरज किसका पीछा करता है,
रोज पहाड़ी पर जाती है शाम कहां।
-- बशीर बद्र
रोज पहाड़ी पर जाती है शाम कहां।
-- बशीर बद्र
चलो बांट लेते हैं अपनी सजायें,
न तुम याद आओ न हम याद आयें।
न तुम याद आओ न हम याद आयें।
सभी ने लगाया है चेहरे पे चेहरा,
किसे याद रखें किसे भूल जायें।
-- सरदार अंजुम
किसे याद रखें किसे भूल जायें।
-- सरदार अंजुम
रफ़्ता रफ़्ता ग़ैर अपनी नजर में हो गए
वाह री गफ़लत तुझे समझ बैठे थे हम।
-- फिराक गोरखपुरी
वाह री गफ़लत तुझे समझ बैठे थे हम।
-- फिराक गोरखपुरी
आंसुओं से ही सही भर गया दामन मेरा
हाथ तो मैंने उठाए थे दुआ किसकी थी।
-- मुजफ्फर वारसी
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हाथ तो मैंने उठाए थे दुआ किसकी थी।
-- मुजफ्फर वारसी
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बेहतरीन ऊर्दू शेरो-शायरी-
दुनिया
दुनिया भी अजब सरा-ए-फानी देखी।
हर चीज यहां की आनी-जानी देखी।
जो आके न जाए वो बुढ़ापा देखा,
जो जाके न जाए वो जवानी देखी।।
हर चीज यहां की आनी-जानी देखी।
जो आके न जाए वो बुढ़ापा देखा,
जो जाके न जाए वो जवानी देखी।।
क्या-क्या दुनिया से साहिबे-माल गये।
दौलत न गई साथ, न अतफाल गये।
पहुंचा के लहद तक फिर आये सब लोग,
हमराह अगर गये तो आमाल गये।।
-- मीर 'अनीस'
दौलत न गई साथ, न अतफाल गये।
पहुंचा के लहद तक फिर आये सब लोग,
हमराह अगर गये तो आमाल गये।।
-- मीर 'अनीस'
शब्दार्थ - सरा-ए-फानी = नाशवान स्थान।
साहिबे माल = संपत्ति के स्वामी।
अतफाल = बालबच्चे।
लहद = कब्र।
हमराह = साथ साथ।
आमाल = कर्म।
साहिबे माल = संपत्ति के स्वामी।
अतफाल = बालबच्चे।
लहद = कब्र।
हमराह = साथ साथ।
आमाल = कर्म।
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