बेस्ट शायरी
इस चांदी के इक टुकड़े पर जां जाती है सर कटता है,
बेवा की जवानी लुटती है, मुफ़लिस का नशेमन जलता है।
बेवा की जवानी लुटती है, मुफ़लिस का नशेमन जलता है।
हाँ, तेरी ही भोली बहनों के दिल इससे लुभाए जाते हैं,
चाँदी के ख़ुदाओं के दर पर मन भेंट चढ़ाए जाते हैं।
-- सुरैया 'नजर' फैजाबादी
चाँदी के ख़ुदाओं के दर पर मन भेंट चढ़ाए जाते हैं।
-- सुरैया 'नजर' फैजाबादी
रोशनी औरों के आंगन में गवारा न सही,
कम से कम अपने ही घर में तो उजाला कीजे।
कम से कम अपने ही घर में तो उजाला कीजे।
क्या खबर कब वो चले आएंगे मिलने के लिए
रोज पलकों पे नई शम्में जलाया कीजे।
-- राईस अख्तर
रोज पलकों पे नई शम्में जलाया कीजे।
-- राईस अख्तर
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