अहमद फराज के गजल :-
ऐसे चुप है कि ये मंजिल भी कड़ी हो जैसे,
तेरा मिलना भी जुदाई की घड़ी हो जैसे।
तेरा मिलना भी जुदाई की घड़ी हो जैसे।
अपने ही साये से हर गाम लरज जाता हूं,
रास्ते में कोई दीवार खड़ी हो जैसे।
रास्ते में कोई दीवार खड़ी हो जैसे।
कितने नादां हैं तेरे भूलने वाले कि तुझे,
याद करने के लिए उम्र पड़ी हो जैसे।
याद करने के लिए उम्र पड़ी हो जैसे।
मंजिलें दूर भी हैं, मंजिलें नजदीक भी हैं,
अपने ही पावों में जंजीर पड़ी हो जैसे।
अपने ही पावों में जंजीर पड़ी हो जैसे।
आज दिल खोल के रोए हैं तो यों खुश हैं 'फ़राज'
चंद लम्हों की ये राहत भी बड़ी हो जैसे।
चंद लम्हों की ये राहत भी बड़ी हो जैसे।
-- अहमद फराज़ (मशहूर पाकिस्तानी शायर)
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