Friday, March 28, 2014

जनाब इक़बाल का शैर :-


Janab Eqbal Sher -

खुदा तो मिलता है इंसान ही नहीं मिलता
यह चीज है कि देखी कहीं नहीं मैंने।

                              -- जनाब इक़बाल

Saturday, March 22, 2014

Mirja Galib ke sher मिर्जा ग़ालिब के शेर :-


मिर्जा ग़ालिब के शेर :-

'ग़ालिब' न कर हुजूर में तू बार बार अर्ज,
जाहिर है तेरा हाल सब उस पर कहे बगैर।
                            -- ग़ालिब साहब

Thursday, March 20, 2014

जिगर मुरादाबादी का शैर :-


गुलशन परस्त हूं मुझे गुल ही नहीं अजीज
कांटों से भी निबाह किये जा रहा हूं मैं।

                            --जिगर मुरादाबादी

Monday, March 17, 2014

HOLI 2014 BEST SHAYRI IN HINDI :-


HOLI 2014 BEST SHAYRI IN HINDI :- 

EK RANG BHARI PICHKARI
VO ANGIYA PR TK MARI HO,
SINE SE RANG DHLKTE HO
TB DEKH BAHAREN HOLI KI.

BHUL KE SARE BHED BHAW
KHELO JM KR HOLI,
RANG BHRE AAKASH SE
BHAR LO KHUSHIYON KI JHOLI.

Thursday, March 13, 2014

होली के रंग शायरों के संग :-


होली विशेष 17 मार्च 2014 - शेरो-शायरी -
होली शायरी -
होली के रंग शायरों के संग :-

इक रंग भरी पिचकारी वो अँगिया पर तक कर मारी हो,
सीने से रंग ढलकते हों तब देख बहारें होली की!
                               -- 'नजीर' अकबराबादी

'नजीर' होली का मौसम जो जग में आता है
वह ऐसा कौन है होली नहीं मनाता है
कोई तो रंग छिड़कता है कोई गाता है
जो खाली रहता है वह देखने को जाता है।
                               -- नजीर अकबराबादी


होली पर नजीर अकबराबादी के काव्य फुहार :-


होली 2014 - शेरो-शारी 
होली पर नजीर अकबराबादी के काव्य फुहार :-

जब फागुन रंग झमकते हों तब देख बहारें होली की
और दफ़ के शोर खड़कते हों तब देख बहारें होली की
परियों के रंग दमकते हों तब देख बहारें होली की
ख़ुम, शीशए-जाम छलकते हों तब देख बहारें होली की

महबूब नशे में छकते हों तब देख बहारें होली की.

गुलजार खिले हों परियों के और मजलिस की तैयारी हो
कपड़ों पर रंग के छीटों से खुश रंग अजब गुलकारी हो
मुंह लाल, गुलाबी आंखे हों और हाथों में पिचकारी हो
उस रंग भरी पिचकारी को अंगिया पर तक कर मारी हो

सीनों से रंग ढलकते हों तब देख बहारें होली की।

और एक तरफ़ दिल लेने को महबूब भवैयों के लड़के
हर आन घड़ी गत भरते हों कुछ घट-घट के कुछ बढ़-बढ़ के
कुछ नाज जतावें लड़-लड़ के कुछ होली गावें अड़-अड़ के
कुछ लचकें शोख़ कमर पतली कुछ हाथ चले कुछ तन फडकें

कुछ काफ़िर नैन मटकते हों तब देख बहारें होली की।

                                               -- नजीर अकबराबादी