नज्म


बशीर बद्र की गजल -

सब कुछ खाक हुआ है लेकिन क्या नूरानी है
पत्थर नीचे बैठ गया है ऊपर बहता पानी है।

बचपन से मेरी आदत है फूल छुपाकर रखता हूं
हाथों में जलता सूरज है दिल में रात की रानी है।

दफ्न हुए रातों के किस्से इक ,की ख़ामोशी में
सन्नाटों की चादर ओढ़े ये दीवार पुरानी है।

उसको पाकर इतराओगे खोकर जान गवां दोगे
बादल का साया है दुनिया, हर शै आनी-जानी है।

तेरे बदन पर मैं फूलों से उस लम्हे का नाम लिखूं
जिस लम्हें का मैं अफ़साना, तू भी एक कहानी है।

                                         -- बशीर बद्र

No comments:

Post a Comment