Sunday, March 29, 2015

महान शायरों के शेर ओ रुबाइयां


कौन रोता है किसी और की खातिर ऐ दोस्त,
सबको अपनी ही किसी बात पे रोना आया।
-- साहिर लुधियानवी
क्या जाने दो घड़ी वो रहे 'जौक' किस तरह,
फिर न तो ठहरे पांव घड़ी दो घड़ी के बाद।
-- जौक
पत्थर को तराश कर बनाता है वो बुत
मैं बुत को तराश कर बनाता हूं खुदा।
-- जोश मलीहाबादी
किसको रोता है उम्र भर कोई
आदमी जल्द भूल जाता है।
-- फिराक
गर जिन्दगी में मिल गए फिर इत्तिफाक से
पूछेंगे अपना हाल तेरी बेबसी से हम।
-- साहिर

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