Sunday, May 25, 2014

अहमद फराज के गजल :-


वो चांद जो मेरा हमसफर था
दूरी के उजाड़ जंगलों में
अब मेरी नजर से छुप चुका है
इक उम्र से मैं मलूलो-तन्हा
जुल्मात की रहगुजार में हूं
मैं आगे बढूं कि लौट जाऊं
क्या सोच के इंतजार में हूं
कोई भी नहीं जो यह बताए
मैं कौन हूं किस दयार में हूं।

-- मलूलो-तन्हा = दुखी और अकेला
-- जुल्मात = अंधेरा
-- रहगुजार = रास्ते

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